Wednesday, July 1, 2020

प्यार का दरिया


                             प्यार का दरिया
आज होम आइसोलेशन की मझधार में खड़ी हूँ सात दिन पूरे हो चुके हैं । इन सात दिनों में कई खट्टे-मीठे अनुभवों का एक नए अंदाज में सामना हुआ है । जिसमें कभी अस्पृश्यता को लेकर हुए दलित आंदोलन याद आते हैं तो कभी अंबेडकर और गाँधी जैसे व्यक्तित्व आँखों के सामने आकर खड़े हो जाते लेकिन फिर उनके ऊपर आता है प्यार का एक सोता जो सब को भूलाकर एक नए ही लोक में ले जाता है । जहाँ इन सब के लिए जगह ही नहीं है । इसमें सबसे खास है घरवालों का प्यार और उनकी जागरूकता जो नई प्रेरणा देते हुए अंदर से एक ताकत दे रहे हैं जिसको सिर्फ महसूस किया जा सकता है शब्दों का जाल उसको अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं है । फिर भी एक छोटी-सी कोशिश :-       
15 जून की वो मध्याह्न जब कई दिनों से अंदर ही अंदर तप रहा लावा आखिरकार बाहर निकलकर आ ही जाता है और फिर शुरू होती है आशियाने की तरफ आने की प्रक्रिया । जिसको अंतिम परिणति प्राप्त होती है 19 जून को टिकट बनने के बाद । उसके बाद भी पाँच दिन तक चलने वाली इंतजार की घड़ियाँ । आखिरकार कब वो 25 जून की सुबह होगी और कब ये फड़फड़ाता परिंदा अपने आशियाने के तरफ पलायन करेगा इसी उम्मीद के साथ समय निकल रहा था । जिसमें एक उमंग होने के बावजूद भी अंदर ही अंदर दो विरोधाभासी रूप चल रहे थे । एक तरफ बरमूडा त्रिकोण की तरह आकर्षित करने वाला घरवालों का प्यार जो बार-बार अपनी तरफ खींच रहा था तो वही दूसरी तरफ न चाहते हुए भी कहीं ना कही दबा कोरोना का डर और पढ़ने की चिंता । लेकिन बाजी तो भारी बरमूडा की ही थी । सो जैसे-तैसे करके ये पाँच दिन भी निकल गए और 25 जून का सूर्योदय हो ही गया । थोड़ी खुशी, थोड़ा उत्साह, थोड़ा रोमांच, थोड़ा आत्मविश्वास और थोड़े डर के साथ भारी सुरक्षा के इंतजाम करके के बाद दो घंटे की आसमान यात्रा और फिर जयपुर । जहाँ हैदराबाद की ठंड की बजाय राजस्थान की चिलचिलाती धूप अपने अलग ही अंदाज में स्वागत कर रही थी । राजस्थान की इस आत्मीयता को आत्मसात करके एयरपोर्ट के बाहर निकली तो पाया पापा रूपी पूरा प्यार बाहर खड़ा इंतजार कर रहा है । जिसको आत्मसात करना मेरे वश की बात नहीं थी लेकिन ह्रदय के अंदर की गहराई तक यह सोता बहता चला गया और फिर शुरू होती है चार घंटे की लंबी यात्रा जिसमें धूप, आँधी, बारिश, प्यार सब मिलकर घर की दूरियाँ घटा रहे थे ।
आखिरकार एक लंबी यात्रा के बाद आता है मेरे सपनों का घर । जहाँ आकर एक बार के लिए सारे सपने पूर्ण हो गए थे । लेकिन यहाँ आते ही शुरू होते हैं नए अनुभव और पता चलता है कि हैदराबाद से घर तक कि ये यात्रा मैं अकेले ही नहीं कर रही थी बल्कि इसमें मेरे साथ कोई अवांछित मेहमान भी आ सकता हैं जिसको सामूहिकता बहुत पसंद है । इस मेहमान से अपने आप और घरवालों को बचाने के लिए कई नए-नए काम किए गए । सारा समान बाहर रखा गया, सभी को सेनेटाईज किया गया, नहाना धोना सब हुआ तब जाकर दूर बैठाकर दूर से ही खाना दिया गया । लंबी यात्रा और थकान के कारण चार-पाँच घंटे सोने के बाद जब उठी तो देखा मेरे कमरे के दरवाजे के बाहर एक पन्ना चिपका दिया गया है जो मेरे बाहर निकलते ही मुझे मुस्कराते हुए फड़फड़ा कर कह रहा था अब तुम्हें सबने अपने आप से अलग कर दिया है लेकिन अब 14 दिन तक मैं तुम्हारे साथ हूँ । मैंने भी कह दिया तुम्हारी इस दंतुरित मुस्कान को देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान कभी नहीं आ सकती । मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा साथ ।
अब मेरे मना करने के बाद भी शुरू होती है एक लंबी विरोधाभासी प्रक्रिया । जिसमें विपरीत रूप से चलने वाली धाराएं भी कहीं ना कहीं जा कर मिल रही थी । ये कहने में बड़ा असमंजस्य पैदा करता है लेकिन वाकई में ऐसा ही हो रहा है । जिसकी मझधार आज है । सात दिन निकल चुके है और सात दिन अभी भी बाकी है । जिनके लिए आज भी एक तरफ सोच रही हूँ कि ये बढ़ते ही चले जाए और कभी खत्म ही ना हो वही दूसरी तरफ ये भी कि ये आज ही खत्म हो जाए । इस विपरीतार्थी सोच के पीछे का मूल कारण इन दिनों के अनुभव है । जिसमें इन सात दिनों ने अलग कमरा, अलग कुर्सी सब कुछ मेरा अपना बना दिया जिन पर सिर्फ और सिर्फ मेरा ही एकाधिकार है । वही दूसरी तरफ दूर से मिलने वाला खाना, उचित दूरी बनाए रखना व अस्पृश्यता जैसे कुछ प्रतिबंध भी है जिसके अहसास से ही सारे के सारे दलित आंदोलन याद आ जाते हैं । सहानुभूति व स्वानुभूति का प्रश्न आकर खड़ा हो जाता है । लेकिन इस अहसास मात्र के होते ही घरवालों के द्वारा प्यार के एक अथाह सागर में डुबो दिया जाता है जहाँ से निकालना मेरे लिए संभव नहीं है । लगता है सब का प्यार मेरे ही हिस्से में आ गया है । जिसके तरीके अलग-अलग है जिसे सिर्फ अंदर से महसूस किया जा सकता है । मेरे कुछ बोलने से पहले हर चीज मेरे सामने रख दी जाती है । वही धर्मा व अन्नू का भी कहना कि “हम तुझे अकेले नहीं छोड़ सकते, जियेंगे तो साथ, मरेंगे तो साथ” अपने आप में ही बहुत सुकून देते हैं।
कोरोना टाइम# होम आईसोलेशन#14 दिन
क्रमशः ...


2 comments:

  1. सुनहरा अनुभव... आगामी की प्रतीक्षा में -- फौजी

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  2. जी आभार,,, बहुत जल्दी ही इंतज़ार की घड़ियां खत्म होगी😊

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