Sunday, January 12, 2020

युवाओं के प्रेरणास्त्रोत : स्वामी विवेकानंद


युवाओं के प्रेरणास्त्रोत : स्वामी विवेकानंद
वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत व प्रेरणापुंज, समाज सुधारक युगपुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 ई. को कलकत्ता के एक क्षत्रिय ब्राह्मण परिवार में पिता विश्वनाथ दत्त व भुवनेश्वरी देवी के घर में हुआ था । उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था । उन्होंने कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की और बड़ी योग्यता के साथ बी.ए. पास किया । शरीर से वे काफी विशाल व शक्तिशाली होने के साथ ही कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़, तैरना सभी में भलीभांति दक्ष थे इनके अलावा संगीत प्रेमी व तबला बजाने में भी उस्ताद थे । संस्कृत व अंग्रेजी के उद्भट विद्वान व यूरोप के तार्किक एवं दार्शनिकों की विद्याओं में परम निष्णात थे । उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे । जिससे उन्होंने अपने गुरु के नाम पर ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । विवेकानंद और परमहंस दोनों एक ही जीवन के दो अंश है जिसमें रामकृष्ण अनुभूति थे जिसकी व्याख्या के रूप में विवेकानंद आये । ‘स्वामी निर्वेदानंद ने रामकृष्ण को हिन्दू धर्म की गंगा कहा है, जो वैयक्तिक समाधि के कमण्डलु में बंद थी । विवेकानंद इस गंगा के भागीरथ हुए और उन्होंने देवसरिता को रामकृष्ण के कमण्डलु से निकालकर सारे विश्व में फैला दिया ।’ स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन की मात्र 39 साल(जन्म-12 जनवरी 1863 - निर्वाण-04 जुलाई 1902) की अवधि में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये जिसमें सबसे महत्त्पूर्ण था धर्म की पुनः स्थापना का कार्य । जिसमें उनकी 1893 ई. में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्मों के महासम्मेलन में उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण रही । उन्होंने धर्म की ऐसी व्याख्या प्रस्तुत की जो अभिनव मनुष्य को ग्राह्य हो और इहलौकिक विजय के मार्ग में भी बाधा नहीं डालें । इस सम्मलेन में विवेकानंद ने जिस उदारता, विवेक व वग्मिता का परिचय दिया था उससे वहाँ के सभी लोग मन्त्रमुग्ध होकर उनके भक्त हो गये थे । जिससे उनको बोलने के लिए सबसे अंत में अवसर दिया जाता था क्योंकि सारी जनता उन्हीं का भाषण सुनने के लिए अंत तक बैठी रहती थी । उनके भाषणों में सम्बन्ध में ‘द न्यूयार्क हेराल्ड’ ले लिखा था कि “धर्मों की पार्लियामेंट में सबसे महान व्यक्ति विवेकानंद है । उनका भाषण सुन लेने पर अनायास यह प्रश्न उठ खड़ा होता हैं कि ऐसे ज्ञानी देश को सुधारने के लिए धर्म-प्रचारक भेजने के बात कितनी बेवकूफी की बात है ।” स्वामीजी धर्म व संस्कृति के नेता थे उन्होंने भारतवासियों की आत्मगौरव की भावना को जागृत करने में महत्त्पूर्ण योगदान दिया था । उन्होंने कहा कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ संसार में सबसे उन्नत ग्रन्थ व हमारा साहित्य सबसे उन्नत साहित्य है और हमारा धर्म ही ऐसा धर्म है जो विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है और यह विश्व के समस्त धर्मों का सार होता हुआ भी उन सबसे अधिक है । विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति की जो सेवा की है उसका मूल्य नहीं चुकाया जा सकता । उनके उपदेशों से ही भारतवासियों ने अपने अतीत के प्रति गौरव व अभिमान महसूस किया एवं पता चला कि हमारी प्राचीन संस्कृति प्राणपूर्ण एवं आज भी विश्व का कल्याण करने वाली है । उनके इस योगदान के लिए ही रवीन्द्रनाथ ने कहा था कि ‘यदि कोई भारत को समझना चाहता है तो उसे विवेकानंद को पढना चाहिए ।’           
‘उठो, जागो तब तक मत रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए’ जैसे उनके आदर्श युवाओं में ऊर्जा व शक्ति का संचार करते हैं जिसके कारण उनकी याद में भारत में प्रतिवर्ष उनके जन्मदिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है । युवा देश का भविष्य होते हैं जिनके हाथों में देश की बागडोर होती है । युवा ऊर्जा व गहन महत्वाकांक्षाओं से भरे होते है जिससे समाज को बेहतर बनाने में व राष्ट्र के निर्माण में सबसे ज्यादा योगदान युवाओं का ही होता है लेकिन आज की युवा पीढ़ी भ्रमित होकर गलत मार्ग पर जा रही है । जिससे मानसिक तनाव, चिड़चिड़ापन, नकारात्मकता व भोग विलास की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है । युवाओं के पथभ्रष्ट होकर गलत रास्ते पर जाने का परिणाम विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो रही हिंसा व तोड़फोड़ के रूप में देखा जा रहा है । अब इस युवा शक्ति को सही मार्ग पर लाने व नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने की आवश्यता है । जिसमें विवेकानंद के विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए । वे कहते थे कि ‘एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जिओ । अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकि सभी विचार को किनारे कर दो । यही सफल होने का तरीका है ।”  देश व समाज को नए शिखर पर ले जाने वाले देश व समाज की रीढ़ युवा शक्ति को जागृत करने व उनमे शक्ति का संचार करने में विवेकानंद के विचार समर्थ है । उनके विचारों में वह शक्ति, कांति व तेज है जो युवाओं को नई चेतना से भर सकते हैं । विवेकानंद ने पराधीन भारत में भी जब अंग्रेजी जुल्मों के कारण छाये निराशा के बादलों को हटाकर सोए हुए समाज को जगाकर नई ऊर्जा का संचार किया था । उसी तरह अब भी उनके विचारों से प्रेरणा लेकर हर युवा को आगे बढ़ने की आवश्यता है । विवेकानंद के इस कथन को साकार करते हुए जन-जन के साहस व शक्ति को बाहर लाना है वे कहते थे कि “मैं भारत में लोहे की मांसपेशियों और फौलाद की नाड़ी तथा धमनी देखना चाहता हूँ, क्योंकि इन्हीं के भीतर वह मन निवास करता है, जो शम्पाओं व वज्रों से निर्मित होता है । शक्ति पौरुष, क्षात्र-वीर्य और ब्राह्म-तेज इनके समन्वय से भारत की नई मानवता का निर्माण होना चाहिए ।’  

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