Sunday, March 29, 2020

भूख और कोरोना


                                  भूख और कोरोना
                                स्वाति चौधरी
लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग, जो जहाँ है वही रहे जैसे कोरोना से जंग को जीतने वाले कई सुझावों के बावजूद लाखों प्रवासी श्रमिक कामगारों को एक साथ अपने गाँवों की ओर लौटते देखकर दिल सहम-सा गया है । सड़कों पर एक विकट स्थिति दिखाई दे रही है । किससे क्या कहा जाए?... समझ से बाहर है । यह स्थिति कई सवाल खड़े कर रही है । जिसमें एक तरफ जहाँ बच्चे, बूढ़े, महिलाएं सभी सामान की गठरी उठाये निकल गए है जिससे इन भूखे-प्यासे लोगों को देखकर ही दिल पसीज रहा है.. वही दूसरी तरफ यह कि आज सड़कों पर जो भयावह स्थिति दिखाई दे रही है उसके क्या परिणाम होंगे? अगर देखा जाए तो इसके परिणाम बहुत घातक साबित हो सकते हैं । आज को अगर देखा जाए तो एक तरह जहाँ कोरोना पॉजिटिव की संख्या एक हजार से ऊपर चली गई है वही अब संक्रमण की संभावना कई गुना बढ़ गई है । सामाजिक दूरी और तालाबंदी सवालों के घेरे में आकर खड़ी हो गई है । दिल्ली, राजस्थान, गुजरात जैसे शहरों में यह स्थिति ओर भी अधिक भयावह दिखाई दे रही है । पचास हजार से अधिक लोगों का सड़कों पर उतरकर आना कोई छोटी बात नहीं है । इन पचास हजार लोगों में से अगर पाँच सौ लोग भी संक्रमित हो गए तो पाँच हजार होने में देर नहीं लगने वाली है । पलायन करते इन लोगों को रोकने के लिए अगर पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए तो आने वाले समय में तबाही का मंजर सबके सामने होगा । इस प्यारे भारत को श्मशान भूमि बनने से कोई रोकने वाला नहीं रहेगा । यह एक बहुत ही चिंतनीय तस्वीर है । जिससे बचने के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए ।
        आखिर तालाबंदी के बाद तीन दिन तक बना हुआ संयम अचानक से कहाँ गायब हो गया? कहाँ चला गया कोरोना का डर?... क्यों सब अपनी और दूसरों की जान की परवाह किए बिना एक साथ बाहर निकलने को बेताब हो रहे हैं? इन सब सवालों का एक ही जवाब है:- ‘भूख’ । इसको देखकर ही नरेश सक्सेना की ‘भूख’ कविता याद या रही है जो कि भूख को समझने के लिए पर्याप्त है - भूख :-
‘भूख सब से पहले दिमाग़ खाती है
उसके बाद आँखें
फिर जिस्म में बाक़ी बची चीज़ों को
छोड़ती कुछ भी नहीं है भूख
वह रिश्तों को खाती है
माँ का हो बहन या बच्चों का
बच्चे तो उसे बेहद पसन्द हैं
जिन्हें वह सबसे पहले
और बड़ी तेज़ी से खाती है
बच्चों के बाद फिर बचता ही क्या है।"
ऐसी भयावह होती है भूख, जिसके आगे सबको हार माननी पड़ती है । आज सम्पूर्ण विश्व के सामने कोरोना चाहे कितनी ही बड़ी माहमारी क्यों ना हो लेकिन भूख के सामने तो इसको भी झुकना पड़ा है । गरीबी और कोरोना की दोहरी मार झेल रहे इन गरीबों ने कोरोना को किनारे करके भूख को पहले रखा है । करें भी तो क्या ? जठराग्नि की आग बैठने नहीं दे रही है । लेकिन आज सड़कों पर खड़ी गरीबी को देखकर पता चल रहा है कि देश से गरीबी नहीं गरीब भाग रहा है । फिर भी इस विकट स्थिति में इन भागते गरीबों को रोककर इनके पुख्ता इंतजाम करने की आवश्यकता है ।
##मेरे प्यारे नादान भारत ।
##कोशिश करो और सुधरों ।
##अभी भी स्थिति संभलने की है ।    
                                                                                                स्वाति चौधरी

2 comments:

  1. Dr swati kuch nhi hoga bharat ke.logo ko ye ek sadharan bimari thi jisko mahamari bnane ke kutil pryas china or amerika dvara kiye gye h. This is a planning of drug mafiya lobby .

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  2. सभी को अपने विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है लेकिन मैं आप के विचारों से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ,,, अब भी अगर स्थितियों की गंभीरता को ना सब समझते हुए आप जैसा बुद्धिजीवी वर्ग अगर इस तरह से सोच रहा है तो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए यह एक बहुत ही घातक सोच है। अमेरिका और चीन दोनों खुद इस महामारी से जूझ रहे हैं और WHO ने जहाँ इसे महामारी और IMF ने 2009 से बड़ी वैश्विक मंदी की चेतावनी विश्व को दी है और आज सम्पूर्ण विश्व इस बीमारी से जूझ रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री और राजशाही परिवार के प्रिंस चार्ल्स क्यों आज इस बीमारी से जूझ रहे है? अमेरिका में क्यों संक्रमित लोगों की संख्या लाख के पार चली गई है? इतना सब कुछ होने के बावजूद अब आप किस आधार पर इसे साधारण बीमारी मान रहे है? यह मेरी समझ से थोड़ा बाहर है ...

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