Tuesday, May 10, 2022

वो स्पर्श

याद है मुझे तुम्हारा वो स्पर्श
जिस दिन
सिमटी थी मैं
तुम्हारे भीतर
उस अंतहीन अंबर के नीचे
सिर्फ ... 
पूर्णता से जीने के लिए... 
उस अंतस को छूने के लिए...
जिस तरह
मिलता है कोई अपना अपने.... 

मिलूँ तुमसे....

बस! एक बार बता दो ...

बस ...एक बार बता दो
कितनी दूर और भागूँ तुमसे... 
बिन बुलाये, अनचाहे... 
हर मोड पर आ जाते हो तुम
अपनी स्मित मुस्कान लिए

बस..इतना सा पता है.. 
जितनी मैं बदलती हूँ अपनी राहें
उतनी ही घटती है तुम्हारी दूरियाँ
इससे ज्यादा नहीं, 
समझ पाती कभी मैं
तभी तो... 

बस.. एक बार ठहरकर बता दो... 
कितनी और भागूँ मैं तुमसे
और 
ये सिर्फ तुम्हें ही पता है
इसीलिए तो बता दो... 
कितनी और बदलू राहें... 

पता हैं मुझे
तुम मुझे कभी गलत राह नहीं बताते, 
पर मुझे जाना है बस.. उसी डगर पर, 
जिस तरफ ले जाती है मुझे
मेरे दिल की हूक.. 
बस... वही राह बता दो मुझे...