कितनी दूर और भागूँ तुमसे...
बिन बुलाये, अनचाहे...
हर मोड पर आ जाते हो तुम
अपनी स्मित मुस्कान लिए
बस..इतना सा पता है..
जितनी मैं बदलती हूँ अपनी राहें
उतनी ही घटती है तुम्हारी दूरियाँ
इससे ज्यादा नहीं,
समझ पाती कभी मैं
तभी तो...
बस.. एक बार ठहरकर बता दो...
कितनी और भागूँ मैं तुमसे
और
ये सिर्फ तुम्हें ही पता है
इसीलिए तो बता दो...
कितनी और बदलू राहें...
पता हैं मुझे
तुम मुझे कभी गलत राह नहीं बताते,
पर मुझे जाना है बस.. उसी डगर पर,
जिस तरफ ले जाती है मुझे
मेरे दिल की हूक..
बस... वही राह बता दो मुझे...
No comments:
Post a Comment