Thursday, November 10, 2022

पी-एच.डी (हिंदी)

पाँच साल के संघर्ष और धैर्य का परिणाम
#पी-एच.डी (हिंदी) 

मुझे यह बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद भारत के एक बेहतरीन विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि पाने का अंतिम चरण (9 नवम्बर 2022) को सम्पन्न हुआ। मेरे माता-पिता, परिजन और गुरुजनों के शुभाशीर्वाद से तथा स्नेही मित्रों की सहायता से हिंदी विभाग, हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद से मैंने 09 नवम्बर 2022 को 'हिंदी यात्रा साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन' विषय पर पी-एच.डी शोध-कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया है। यह दिन आजीवन आनंददायी तथा अविस्मरणीय रहेगा। इस अवसर पर अतीत की स्मृतियाँ अनायास ही उभर आयी । आज इस सफलता के पीछे मुड़कर देखती हूँ तो बहुत संवेदनशील और भावुक क्षण याद आते हैं। जीवन में उन तमाम ऊंचाईयों तक पहुंचने के लिए हर किसी इंसान ने धूप और छांव के पल देखें होंगे... उसी तरह मैंने भी अपने ग्रामीण जीवन से लेकर इस सीढ़ी तक अनेक उतार- चढ़ाव देखे लेकिन हिम्मत, अपने आप पर विश्वास और धैर्य ने हमेशा साथ दिया |
इस सफर में अनेकानेक उतार-चढा़व और बाधाएं आई... लेकिन ईश्वर की अपार शक्ति, मेहनत और गुरुजनों के मार्गदर्शन ने मुझे इस स्थान तक पहुंचाया। 'आप बहुत अच्छा कर सकती हो', इस बात का एहसास दिलाने वाले आदरणीय गुरुवर डॉ. भूपसिंह यादव सर व राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय(डॉ. सुरेश राठौड़ सर, डॉ. संदीप सर, डॉ. जितेंद्र सर) की आभारी रहूँगी। उनकी छत्रछाया का ही प्रभाव रहा कि मैं हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की छात्रा बन सकी।  राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय से हैदराबाद विश्वविद्यालय का सफर मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण  रहा | इस दौरान बहुत कुछ सीखने को मिला। दोनों विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकगणों के मार्गदर्शन के परिणामस्वरूप यह संभव हो पाया। हैदराबाद में मुझे एक अलग वैचारिक दृष्टिकोण मिला, जो राजस्थान में संभव नहीं था। दक्षिण भारत में रहकर बहुत कुछ सीखने को मिला... यहाँ रहकर सोचने-समझने, बोलने, लिखने की नई क्षमता विकसित हुई। आने वाले दिनों में स्वतन्त्र लेखन की दिशा में भी अपनी सक्रियता बढ़ाने का प्रयास करुँगी। 
जीवन के इस कठिन सफर में सहयोग देने वाले सभी गुरुजनों विशेष रूप से प्रो. गजेंद्र पाठक सर, प्रो. कृष्णा सर, प्रो. रेखा रानी मैम, प्रो. अन्नपूर्णा मैम, डॉ. भीम सिंह सर, प्रो. सच्चिदानंद चतुर्वेदी सर, डॉ. प्रकाश सर, प्रो. नारायण राजू सर और हैदराबाद विश्वविद्यालय का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ। 
सबसे अधिक आभार मेरे माँ-दादाजी और माता-पिता का जिन्होंने मुझे इस लायक बनाया और हैदराबाद भेजा । कभी भी किसी चीज के लिए रोका नहीं । मुझे इस योग्य बनाया और शिक्षा में आगे बढ़ने का सुअवसर प्रदान किया। ह्रदय की अतल गहराइयों से आपका हार्दिक आभार। शादी के बाद भी मेरे परिवार वालों विशेषकर सुभाष जी ने हर कदम पर मेरा साथ दिया ! साथ ही सभी मित्रों वंदना, देविका, सुरेश, श्रुति ओझा, आशु, राजेश भैया, विनीत, शशांक, धर्मवीर, राजेंद्र मीणा और भाई भरत और पिंकी दीदी का बहुत-बहुत आभार। जिन्होंने मुझे समय-समय पर प्रेरित और प्रोत्साहित किया। 
पुनः मैं माता-पिता, सुभाष जी ,गुरुजनों, मित्रों और प्रियजनों का दिल से आभार व्यक्त करती हूंँ ।  
# डॉ.स्वाति चौधरी 🙏

Tuesday, May 10, 2022

वो स्पर्श

याद है मुझे तुम्हारा वो स्पर्श
जिस दिन
सिमटी थी मैं
तुम्हारे भीतर
उस अंतहीन अंबर के नीचे
सिर्फ ... 
पूर्णता से जीने के लिए... 
उस अंतस को छूने के लिए...
जिस तरह
मिलता है कोई अपना अपने.... 

मिलूँ तुमसे....

बस! एक बार बता दो ...

बस ...एक बार बता दो
कितनी दूर और भागूँ तुमसे... 
बिन बुलाये, अनचाहे... 
हर मोड पर आ जाते हो तुम
अपनी स्मित मुस्कान लिए

बस..इतना सा पता है.. 
जितनी मैं बदलती हूँ अपनी राहें
उतनी ही घटती है तुम्हारी दूरियाँ
इससे ज्यादा नहीं, 
समझ पाती कभी मैं
तभी तो... 

बस.. एक बार ठहरकर बता दो... 
कितनी और भागूँ मैं तुमसे
और 
ये सिर्फ तुम्हें ही पता है
इसीलिए तो बता दो... 
कितनी और बदलू राहें... 

पता हैं मुझे
तुम मुझे कभी गलत राह नहीं बताते, 
पर मुझे जाना है बस.. उसी डगर पर, 
जिस तरफ ले जाती है मुझे
मेरे दिल की हूक.. 
बस... वही राह बता दो मुझे...