Saturday, December 25, 2021

सपनों की दरकार

 

                            

सपनों की दरकार

रीतिका निर्निमेष आकाश में टिमटिमा रहे तारों को देख रही थी । आकाश एकदम साफ था, हमेशा की तरह आज भी ध्रुव तारा कुछ अधिक चमक के साथ अपनी उपस्थिति प्रस्तुत कर रहा था । चाँद भी पूर्णमासी के चाँद की तरफ अपनी चौदह कलाओं के साथ निर्मलता बरसा रहा था । बाहर सब कुछ एकदम शांत था लेकिन अंदर एक सोता लगातार बहा जा रहा था । रीतिका ने एक गहरी साँस लेकर फिर घड़ी की तरफ देखा तो रात के दो बज रहे थे, आज ये चौथी रात है लेकिन नींद कहीं आस-पास में भी दिखाई नहीं दे रही है, ना चाहते हुए भी बार-बार वही ख्याल आता है और नींद को अपने में दबोच कर ले भागता है । आखिर ऐसा भी क्या हुआ था उस दिन जो आज तक भीतर से कचोट रहा है । यही सब सोचते हुए पास सो रहे अर्णव की तरफ देखा । वह तो अभी भी बेखबर होकर खर्रटे भर रहा था, उसकी ये खर्राटों की आवाज मुझे और ज्यादा अंदर से भेदती हुई चली जा रही थी..

वो बीस अक्टूबर की बेला जब हम एक-दूजे के हुए थे और सभी ने हँसी-खुशी के साथ विदा करके अपने कंधों का भार हल्का किया था । खुश क्यों नहीं होते बड़ी मन्नतों के बाद ये दिन आया था जिससे बुढ़ाएं पिता के ये कंधे आज भारहीन महसूस कर रहे थे । इस घर से जुदाई लेकिन फिर वही नए घर का प्यार-दुलार, जिससे खुशी की लहरी में दिन भागे जा रहे थे लेकिन किसे पता था कि इतनी जल्दी ही प्यार ही टीस बनकर रह जायेगा । अर्णव को कितनी बार मना किया था नहीं, हमें इस तरह की लापरवाही नहीं करनी हैं, लेकिन उस समय कहाँ पता था समागम के क्षण सुखों में लीन होने का क्षण आज ये दिन दिखा देगा । आज एक बार फिर मसूसस कर रही हूँ उस पल को, उस क्षण को जिस दिन हम अपनत्व में लीन हुए थे शायद उसी से ये बीजारोपण हुआ होगा ।

उसी के दो महीने बाद मैंने तुम से बेखबर तुम्हारे आने की पहली पुकार सुनी है । जिसे सिर्फ मैं अंदर से महसूस कर रही हूँ क्या ये सच है ? मुझे नहीं पता सच क्या हैं लेकिन मैं तुम्हें महसूस कर रही हूँ, सही गलत के निर्णय का मापदंड मेरे पास नहीं हैं, आपकी उपस्थिति का अंदाजा मैं एक ही पैमाने से लगा सकती हूँ जिसके इंतजार की घड़ियों को तुमने समाप्त करके कर दिया है । जिससे मैं हमेशा भागती रहती थी लेकिन आज उसी एक-एक दिन की गिनती कर रही हूँ, चौथा, पाँचवा, छठा, आज सातवाँ दिन हो गया लेकिन दो महीने होने के बाद भी वो दिन अभी तक नहीं आया, कभी सोचा नहीं था कि शादी के बाद इस दिन का इंतजार करके इसके लिए तरसना पड़ेगा । अर्णव बार-बार एक ही सवाल पूछते “आया क्या ? तुम बिल्कुल भी फिक्र मत करो । मैं हूँ ना तुम्हारे साथ तुम्हें कुछ नहीं होगा, बहुत जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा ।” लेकिन अब और कितना इंतजार करूँ, कितनी और रातें टिमटिमाते तारों को देखकर निकालूँ । अब मैं इससे ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती । मुझे इन सब से मुक्ति चाहिए । वापस मुझे मेरी वहीं हँसती खेलती ज़िंदगी चाहिए । मैं मेरी उसी दुनिया में वापस जाना चाहती हूँ । जहाँ मेरी मेहनत, उम्मीदें और सपने थे । उसी के दम पर मैं अपनी अभिलाषाओं को पूरा करना चाहती हूँ । लेकिन अब ये सब सुनने वाला यहाँ कौन बचा था । यही सब सोचते-सोचते रीतिका एक बार फिर विचारों की इस उथल-पुथल से दूर हटकर घड़ी की सुईयों की ओर नजर डालती है । अब तो घड़ी की सुईयां भी संकेतों में कह रही थी ‘चार बज गए है । रोको, इस उथल-पुथल को और सो जाओ ।’ लेकिन विचारों का प्रवाह घड़ी की टिक-टिक को अपने में दबाकर भागा जा रहा था । और चलते प्रवाह के बीच सूरज अपनी लालिमा को साथ लिए मुँह निकाल रहा था, चिड़िया चहचहा रही थी और पक्षियों के झुंड कलरव करते हुए उठने का संकेत कर रहे थे । इसी तरह फिर से नए दिन की शुरुआत । आज कुछ अच्छा हो इसी कामना के साथ रीतिका दो नाम भगवान के लेकर उठती है । जिस भगवान को वह कभी कोई शिकायत नहीं करती थी आज उसी के सामने वह अपने सपनों की भीख माँगती है ।

“क्या हुआ रीतिका, कुछ खुशखबरी अब तो सुना दो । अब तो दो महीने से ज्यादा हो गए ।” अर्णव इतना कहकर रीतिका को अपनी गोद में बैठा लेता है । इतना-सा स्पर्श पाते ही रीतिका के अंदर का पारा बहकर बाहर आ जाता है, वह फफक-फफक कर रोने लगती है । अर्णव भी अंदर ही अंदर फूट पड़ता है लेकिन वह रीतिका के सामने अपने आप को कमजोर नहीं करना चाहता । इसीलिए अपनी सारी हिम्मत को समेटकर रीतिका के आँसू पोंछता है और उसे ढाँढ़स बंधाता है “कुछ नहीं होगा रीतिका, मैं पूरे कुरूँगा तुम्हारे सपने । अब इससे ज्यादा इंतजार हम नहीं कर सकते, आज ही डॉक्टर के पास चलेंगे, जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा । डॉक्टर शब्द को सुनकर रीतिका को थोड़ी शांति मिली । वही आखिरी उम्मीद है अब सिर्फ ।

सुबह के दस बज रहे है । अर्णव और रीतिका डॉक्टर के पास इंतजार की कड़ी में पाँचवे स्थान पर खड़े है । एक-एक करके उनके आगे के लोग चले जा रहे हैं और अंतत: अब रीतिका और अर्णव डॉक्टर के सामने बैठे है । दोनों ही अपने अंदर एक गहरे विषाद, चिंता और उत्सुकता को समेटे सोच रहे हैं कि आगे क्या होगा । डॉक्टर सब कुछ जाँच-परख करके कहता है “बधाई हो आपको, आप माँ बनने वाली हो ।” ये शब्द सुनते ही रीतिका का दिल सहम-सा गया और अर्णव को लगा कि उसके नीचे की जमीन कोई खिसका कर ले जा रहा है । हर्ष और विषाद की एक गहरी रेखा दोनों के शिकन पर उभरकर आ गयी थी जिससे हर्ष लगातार गायब होता जा रहा था और विषाद अपनी पूर्णता के साथ उभर रहा था । जिस शब्द को सुनने की हिम्मत रीतिका और अर्णव नहीं जुटा पा रहे थे वही शब्द आज डॉक्टर खुशी-खुशी सुना रहा था ।

एक गहरी खामोशी के बाद अर्णव हिम्मत जुटाकर कहता है –“नहीं डॉक्टर साहब, अभी हमें बच्चा नहीं चाहिए, अभी तो शादी के दो महीने ही हुए है, हम अभी इसके लिए किसी भी तरीके से तैयार ही नहीं है । हमारे सारे ख्वाब तो अभी अधूरे ही है । इस आगामी ख्वाब को हम अभी पूर्ण नहीं करना चाहते ।” एक साँस में ही अर्णव ने अपनी बात कह दी । रीतिका सबकुछ भूलकर धीरे से अपने पेट को हाथों से स्पर्श करके उस नए मेहमान की उपस्थिति को महसूस कर रही थी । एक तरफ अधूरे ख्वाब और दूसरी तरफ से किलकारी । दोनों आपस में उलझ कर अपने आप को बचाने के लिए रीतिका से विनती कर रहे थे । तभी अचानक से रीतिका का ध्यान टूटा – डॉक्टर पूछ रहे थे “रीतिका तुम बताओं क्या चाहती हो । इस बच्चे को नई दुनिया दिखाने के लिए तैयार हो ।” क्या बोलती रीतिका उसके तो शब्द ही बच्चे और अधूरे सपनों में उलझते चले जा रहे थे । कुछ देर चुप रहकर ममत्व को बलि देकर अपने सपनों की एक उड़ान भरते हुए अपनी गर्दन ‘ना’ के जवाब में हिला दी । डॉक्टर – “एक बार फिर सोच लो आप दोनों । अगर नहीं चाहते तो फिर इसका समाधान गर्भपात के रूप में ही हमें करना होगा ।”

गर्भपात का शब्द सुनते ही अर्णव और रीतिका की आँखें एक-दूसरे से मिलती है और देखते ही दोनों के आँसू लुढ़ककर गिरते हैं । नजरे हटाकर अर्णव डॉक्टर से कहता है- “इसके लिए क्या करना होगा । रीतिका को तो खतरा नहीं है ।” नहीं, नहीं डरने की कोई बात नहीं है, अभी ज्यादा समय नहीं निकला है कुछ टेबलेट्स की मदद से ही यह आसानी से हो जाएगा । बस थोड़ी परेशानी रक्तस्त्राव की हो सकती है । वो अगर नहीं रुके तो तुम्हें फौरन मेरे पास आना होगा । वैसे कुछ नहीं होगा । मैं सब संभाल लूँगा । आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए । रीतिका फिर विचारों के प्रवाह में बही जा रही थी । कभी सोचा नहीं था कि ये दिन भी देखने को मिलेंगे । यही होती है क्या शादी ? प्यार का नतीजा इस रूप में निकल कर आता हैं क्या ? माँ-बाबा मे मुझे कितने नाज़ों से पाला था और आज मैं ही अपने अंश को इस तरह बाहर फेंक रहूँ । तभी डॉक्टर कहता है “ये लीजिए कुछ टेबलेट्स, इन्हें एक निश्चित अंतराल के बाद लेना है और डरना नहीं है बिल्कुल भी । कुछ भी परेशानी होते ही तुरंत आ जाना ।”

रीतिका अपने ममत्व को दबाकर दवाईयां खाने की कोशिश कर रही है लेकिन सारी कोशिशों के बावजूद एक बार के लिए भी उसका मुँह नहीं खुल रहा है । अर्णव बार-बार हिम्मत दिला रहा है “भावनाओं को किनारे कर अपने-आप को मजबूत करो रीतिका । आओ मेरी गोद में यहाँ बैठकर बस एक बार मुँह खोलो । और आखिरकार भावनाओं पर दृढ़ निश्चय की विजय हुई । लेकिन इसी विजय से रीतिका निढाल होकर गिर जाती है और इंतजार करती रहती है । अपने ममत्व के बाहर निकलने का । जल्दी ही इंतजार की घड़ियाँ खत्म होती है और वह अपने लगातार रिसते ममत्व को कपड़े में दबाकर बार-बार डस्टबीन की तरह कदम बढ़ाती है....

       स्वाति चौधरी